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August 1, 2025

सार्थक बिगुल

पर्वतीय क्रांति की आवाज

नगर निकाय चुनाव में भू कानून मुद्दा बने ताकि सरकार इसे गंभीरता से ले।

सुनील उनियाल/
मसूरी। राजनैतिक दल चुनाव से पहले कई वादे जनता से करते है, लेकिन जब चुनाव हो जाता है तो उनके वादे जनता दूरी बना लेते हैं। पिछले दिनों भू कानून का मामला काफी गरम रहा। लेकिन उसके बाद ठंडा पड़ गया। हालांकि प्रदेश सरकार ने सख्त भूकानून लाने की बात की लेकिन अब इस पर सरकार की चुप्पी जनता को खल रही है। यहीं कारण है कि भू कानून का मामला अब नगर निकाय चुनावों में भी उछाला जा रहा है। ताकि राजनैतिक दल इस पर संज्ञान लें।
राज्य आंदोलनकारी व इंद्रमणि बडोनी स्मृति विचार मंच के अध्यक्ष पूरण जुयाल ने चुनाव में वोट मांगने आने वालों से भू कानून लागू करने के लिए प्रयास करने की बात की है। उन्होंने कहा कि जब जागो तभी सवेरा होता है, भूकानून के लिए कमेटी गठित की गई जिसने प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी सरकार को रिपोर्ट सौंप दी है, लेकिन उसके बाद यह मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है, आखिर इससे क्या हासिल हुआ। कारण साफ है ना ही कमेटी और ना सरकार भू कानून को गम्भीरता से ले रही है। जिनके प्रयास से कमेटी गठित की गई, चाहे उनकी धयेय या मनसा भू रक्षा के लिए है, ठीक है, अचछी बात है, लेकिन कमेटी के कर्ता धर्ताओं को ज्ञात होना चाहिये कि ये उतराखण्ड के लिए सबसे महत्वपूर्ण है। राज्य का निर्माण करने में आंदोलनकारियों ने अपनी कुर्बानी दी, यातनाएं सही व बडा स्वतः स्फूर्त आंदोलन चला उसके बाद राज्य बना। जिसके पीछे एक मकसद उत्तराखंड में सख्त भूकानून लाना भी था ताकि यहंां की जमीनों को बाहरी भू माफियाओं से बचाया जा सके। अगर उत्तराखंड के पास जमीन ही नहीं बची तो राज्य बनाने का मकसद समाप्त हो जायेगा। इसके लिए चाहिये अपने अपने नगर मे समितियां बनाकर भू कानून के लिए लगातार धरना प्रदर्शन कर आवाज उठायी जानी चाहिए ताकि सरकार स पर गंभीरता दिखाये। उन्होंने कहा कि अच्छा होता कि नगर निकाय व नगर निगम के चुनाव में चुनाव लड़ रहे प्रत्याशी अपने अपने घोषणा पत्र मे भू कानून का उल्लेख करे। व जो प्रत्याशी वोट मांगने आये उससे भू कानून की बात कर उसे अहसास दिलायें कि यह राज्य के लिए जरूरी है व इसके लिए आगे संघर्ष करना होगा। वहीं कहा कि आने वाले समय में अपने नगर की समितियों को भी भू कानून को लेकर एक दृष्टिकोण रखना चाहिए ताकि यह बाद प्रदेश की सरकार तक पहुंच सके।

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संपादक: सुनील उनियाल

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