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July 31, 2025

सार्थक बिगुल

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लेक्चर सीरीज में मसूरी की लेखिका प्राची रतूड़ी मिश्रा की पुस्तक उत्तराखंड कुजीन पर हुई चर्चा।

सुनील उनियाल/           मसूरी :- मसूरी हेरिटेज सेंटर के तत्वाधान एवं इनटेक के माध्यम से लंढौर लेक्चर सीरीज के 85वें संस्करण में मसूरी की लेखिका प्राची रतूडी मिश्रा की उत्तराखंड की पाक परंपराओं व लोक कथाओं पर लिखी गयी पुस्तक  उत्तराखंड कुजीन फूड एंड फोेकटेल्स फार्म द हिल्स पर चर्चा की गई जिसमें शहर के बुद्धिजीवियों ने पुस्तक पर अपनी अभिव्यक्ति दी।
प्राची रतूड़ी मिश्रा की यह पांचवी पुस्तक है जिसका लोकार्पण शिक्षाविद व खाद्य इतिहासकार पदश्री डा. पुष्पेश पंत ने किया था। पुस्तक में 6 लोक कथाएं और 100 से अधिक व्यंजन हैं, जिनमें मसूरी में उनके शुरुआती वर्षों और गढ़वाल में उनकी जड़ों की पुरानी यादें शामिल हैं. रतूड़ी  को गढ़वाल, कुमाऊं और जौनसार बावर से व्यंजनों को इकट्ठा करने में पांच साल का समय लगा। अंग्रेजी में लिखी गयी इस पुस्तक में गढवाली शब्दों का भी बखूबी समायोजित किया गया, वहीं ब्वई मैं क्या ता करूं, पंच पकौड़ा, सौत पुरो पुरो पुरो, खिचड़ी मिट्ठी, भिलंगना और काफल पाक्यो को लोक कथआों के माध्यम से प्रस्तुत किया है। रतूड़ी ने बताया कि भोजन एक जीवित विरासत है. जब एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को कोई व्यंजन दिया जाता है, तो उसके साथ कई रीति-रिवाज और परंपराएं भी दी जाती हैं. इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि लगभग पचास पारंपरिक पाक प्रथाएं यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सूची में अंकित हैं. भोजन किसी समाज के रीति-रिवाजों, विश्वासों और मूल्यों को दर्शाता है। भोजन की एक और अनूठी गुणवत्ता यह है कि भोजन गर्मजोशी, आराम और प्यार की यादों से कितनी निकटता से जुड़ा है. और यह हमें अनिवार्य रूप से हमारी जड़ों से कैसे जोड़ता है। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में कहा गया
है कि सांप्रदायिक भोजन सामाजिक बंधन और कल्याण की भावना को बढ़ाता है. कुछ ऐसा जो हम सभी ने खुद अनुभव किया है। रतूड़ी ने कहा कि उत्तराखंड की पाक विरासत के बारे में बात करना कई कारणों से महत्वपूर्ण है. यह दुखद है, लेकिन हम पहाड़ों में अपनी परंपराओं और संस्कृति पर उतना गर्व नहीं करते हैं. जब पर्यटक पहाड़ों पर आते हैं, तो उन्हें केवल मैगी, चाउमीन और मोमोज ही मिलते हैं, यहां के पारपंरिक पकवान नहीं मिलते। प्राची ने बताया कि पुस्तक में यहां की लोक संस्कृति व यहां के उत्सवों को भी जोड़ा गया है। पुस्तक में यहां के खानपान, संस्कृति, से भी अवगत कराया गया है। जो यहां की पाक पंरपरायें है, उन्हें रिकार्ड किया जाना चाहिए वह आगे की जनरेशन में जायेगा, दादी -नानी के खाने को आगे बढाया जाय जो उन्होंने खिलाया वह अपने बच्चों को भी सिखायें। उन्होंने कहा कि जो भी पर्यटक यहां आता है उन्हें यहां के व्यजंन परोसे जाने चाहिए अगर परांठा परोस सकते हैं तो स्वालें भी परोसा जा सकता है, कुकीज को रोटाना के रूप में परोसे जा सकते है।
कुमाऊं में कुछ न कुछ लोकल मिल जाता है, यहां का खाना बहुत पौष्टिक है, सरकार भी मोटे अनाज को काफी प्रचारित कर रही है व उसकी मांग बढी है। जब यहां के खाद्य पदार्थो की मांग बढेगी तो बंजर खेत आबाद होगें व पलायन कम होगा व लोग वापस लौटेंगे। इस मौके पर सुरभि अग्रवाला ने कहा कि प्राची ने इस पुस्तक में जहां यहां के खान पान की परंपराओं पर लिखा है वहीं यहां की लोक संस्कृति की जानकारी भी दी है। यह पुस्तक निश्चित की बहुत अच्छी है, जिसमें पूरे मन से कार्य किया गया है। इनटेक व मसूरी हेरिटेज सेंटर भी चाहता है कि ऐसे लेखक आगे आये जो यहां की परंपराओं व यहां की हर चीज के बारे में लिखें,ताकि देश दुनिया को पता चल सके। इस मौके पर लेखक गणेश सैली, जय प्रकाश उत्तराखंडी, संदीप साहनी, रजत अग्रवाल, आदि ने भी अपने विचार रखे। इस मौके पर स्थानीय महिलाओं ने गढवाली गीत भी प्रस्तुत किए जो यहां की खाद्य पंरपराओं से जुडे थे। इस मौके पर नागेद्र उनियाल, तान्या शैली, धीरेंद्र रतूडी, उर्मिला रतूडी, गौरी मिश्रा, सामिया अग्रवाल, निधि अग्रवाल, अरूण डबराल, आदि मौजूद रहे।
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संपादक: सुनील उनियाल

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