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July 30, 2025

सार्थक बिगुल

पर्वतीय क्रांति की आवाज

स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक एवं क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद की जयंती मना कर उन्हें याद किया।

सुनील उनियाल /    मसूरी:- तिलक मेमोरियल लाइब्रेरी एवं इस्टीटयूट में महान स्वतत्रंता सेनानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक एवं क्रातिकारी चंद्रशेखर आजाद की जयंती मनाई गयी। इस मौके पर उनके चित्र पर पुष्पाजंलि अर्पित कर श्रद्धाजंलि देकर उन्हें याद किया गया।
तिलक लाइब्रेरी सभागार में आयोजित जंयती समारोह में लोक मान्य तिलक को याद करते हुए कहा गया कि वह भारत की आजादी के नायक होने के साथ ही प्रमुख भारतीय राष्ट्रवादी, शिक्षक, समाज सुधारक, स्वतंत्रता सेनानी थे। उनका जन्म 23 जुलाई 1856 कों रत्नागिरी, महाराष्ट्र में हुआ था और 1 अगस्त, 1920 को मुंबई में उनका निधन हो गया। तिलक स्वतंत्रता संग्राम के शरूआती नेताओं में से एक थे और उन्हें उनके कार्यां को देखते हुए लोकमान्य की उपाधि दी गई थी। तिलक ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार हैं, और मैं इसे लेकर रहुँगा का प्रसिद्ध नारा दिया था, जो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलनका एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया। इस मौके पर तिलक लाइब्रेरी समिति के अध्यक्ष अधिवक्ता आलोक मेहरोत्रा ने कहा कि तिलक नें शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने पुणे में डेक्कन कॉलेज से गणित में स्नातक की उपाधि प्राप्त की और बाद में एक शिक्षक के रूप् में काम किया। उन्होंनें मराठा और केसरी नामक दो समाचार पत्र भी शुरू किए जो ब्रिटिश शासन के खिलाफ लोगों को जागरूक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। तिलक ने भारतीय समाज में सुधार के लिए भी काम किया। उन्होने बाल विवाह और छुआछूत जैसी सामाजिक बुराइयों का विरोध किया। उन्होने शिवाजी उत्सव और गणेश उत्सव जैसे त्योहारों को पुनर्जीवित किया। जिसका उपयोग लोगों मे ंदेशभक्ति की भावना जगाने के लिए किया जाता था। तिलक को अंग्रेजों ने कई बार जेल भेजा, लेकिन उन्होने कभी भी अपने सिद्धांतो ंसे समझौता नहीं किया। 1908 में उन्हें छह साल के लिए बर्मा की मांडले जेल में भेज दिया गया, जहाँ उन्होने गीता रहस्य नामक एक पुस्तक लिखी। 1916 में तिलक ने होम रूल लीग की स्थापना की और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक महत्वचपूर्ण भूमिका निभाई। तिलक का निधन 1अगस्त 1920 को मुंबई में हआ था। उनका योगदान भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और भारतीय इतिहास में हमेशा याद रखा जाएगा। उन्हें लोकमान्य के रूप में जाना जाता है। इस मौके पर उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में आजादी के लिए ब्रिटिश सरकार से लड़ने वाले क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद को भी उनकी जयंती पर याद किया व कहा कि उन्होंने देश की आजादी के लिए क्रांति का सहारा लिया जबकि दूसरी ओर अंहिसात्मक आंदोलन जारी रहा। उनके विचारों से अंग्रेज डर गये थे, लेकिन उन्होंने कभी हार स्वीकार नहीं की व जब उन्हें पकड़ने का प्रयास किया गया तो उन्होंने स्वयं को गोली मार ली लेकिन अंग्रेजों के हाथों नहीं आये। ऐसे महान कं्रातिकारी से प्रेरणा लेनी चाहिए। इस मौके पर मदन मोहन शर्मा ने भी विचार रखें व सभी का आभार व्यक्त किया। वहीं विजय लक्ष्मी कोहली ने पुस्तकालय के लिए अपनी दो पुस्तकें भेंट की। कार्यक्रम में समीर शुक्ला, डा. कविता शुक्ला, पवन गोयल, बिजेंद्र पुंडीर, अनिल गोयल, रजत अग्रवाल, शिव अरोड़ा, राखी गोयल, अंशी रावत, मदन मोहन शर्मा, माधुरी शर्मा, शरद गुप्ता, शूरवीर भंडारी, खुशदेव सिंह, महिमानंद, सुघा शाह, संतोष आर्य सहित लोग मौजूद रहे।

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संपादक: सुनील उनियाल

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